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विलुप्त होती जा रही घरौंदा बनाने की परंपरा।

राम सुखित सहनी के कलम से—

भारतीय संस्कृति में हर पर्व का अपना विशेष महत्व है। दीपों का महापर्व दीपावली की तो बात ही अलग है। रोशनी के इस त्योहार में घरौंदा और रंगोली बनाने की परम्परा लंबे समय से चली आ रही है। लेकिन आधुनिकता के दौर में इसका स्वरूप बदलने के साथ ही लोग भूलने लगे हैं।

मिट्टी की जगह थर्मोकोल

सामान्य तौर पर घरौंदे का निर्माण मिट्टी से होता है। लेकिन बदलते फैशन में लकड़ी, गत्ता और थर्मोकोल के भी घरौंदे लोग बनाने लगे हैं। घरौंदे से खेलना लड़कियाँ पसंद करती हैं। इस कारण वे इसे इस तरह सजाती हैं, जैसे अपना घर हो। नरहन स्टेट रोसड़ा समस्तीपुर के डा0प्रो0रानीकुमारी कहती है कि पहले जैसा उत्साह अब नहीं रहा। काम हावी हो रहा है। समय के साथ लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। हर बार की भाँति इस बार भी किसी तरह समय निकाल कर  घरौंदा बनाकर सजाई हूँ।

क्यों बनाती हैं “घरौंदा”कुवाँरी लड़कियाँ —

कार्तिक की शुरुआत के साथ ही घर में सफाई का काम भी शुरू हो जाता है। यह महीना दीपावली के आगमन का अहसास दिलाता है। इस दौरान घरों में घरौंदे का निर्माण शुरू हो जाता है। घरौंदा घर शब्द से बना है। सामान्य तौर पर दीपावली के आगमन पर अविवाहित लड़किया घरौंदा बनाती हैं। वे ऐसा इसलिए करती हैं ताकि उनका घर भरा-पूरा रहे एवं मिले। सामान्य तौर पर घरौंदा बनाने का प्रचलन दीपावली के दिन होता है।

कब से हुई घरौंदा बनाने जैसी परंपरा की शुरुआत—-
पुराणी मान्यताओं के अनुसार जब भगवान श्रीराम 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे, तो उनके आने की खुशी में उनके महल को दीपों से सजाया गया था। इसी को देखते हुए घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन हुआ।

मायके धन धान्य से रहे भरा–
घरौंदे को सजाने के लिए कुल्हिया-चुकिया का प्रयोग होता है। लड़किया उसमें फरही और मिष्ठान आदि भरती हैं। इसके पीछे मुख्य वजह यह रहती है कि भविष्य में जब वे शादी के बाद ससुराल जाएँ तो भंडार भरा रहे। कुल्हिया-चुकिया में भरे अन्न का प्रयोग वह स्वयं नहीं करतीं, बल्कि इसे अपने भाई को खिलाती हैं।
पुरुष के कंधे पर दारोमदार—
बड़े बुजुर्गो की मानें तो इसके पीछे मुख्य वजह यह रहती है कि घर की रक्षा और उसका भार वहन करने का दायित्व पुरुष के कंधे पर रहता है। घरौंदे के पीछे मान्यता यह भी है कि लड़कियों को जो भी घर मिले, वह उसकी आशा के अनुरूप हो।

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