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मोबाइल टावर के रेडिएशन से मधुमक्खियां हो रही विलुप्त,डॉक्टर रानी कुमारी

डॉक्टर रानी कुमारी का जन्म 29 जून 1984 को नरहन स्टेट गांव में एक साधारण एवं शिक्षित परिवार में हुआ । 2014 में इनकी शादी इनकी हुई ।  माताजी जीवछ कुमारी जो नरहन मध्य विद्यालय से 2017 में प्रभारी हेड मास्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं । इनके पिताजी बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर से मेडिकल की पढ़ाई कर अपना प्राइवेट होम्योपैथिक का क्लिनिक चलाते  हैं । इनके पिताजी नरहन गांव के पूर्व सरपंच भी रह चुके हैं । 4 भाई बहन में रानी कुमारी सबसे बड़ी हैं इस कारण इन पर परिवारिक जिम्मेदारियां भी है। रानी कुमारी की प्रारंभिक शिक्षा इनके माता के विद्यालय से प्रारंभ हुआ । शिक्षा के प्रति बचपन से ही इनकी गहरी रुचि थी । ये बचपन से ही मिलनसार स्वभाव की रही हैं । जब से इन्होंने होश संभाला तभी से इनको गलत चीजें बर्दाश्त नहीं होती थी और ये अन्याय के खिलाफ आवाज उठाती रही हैं । इस कारण बहुत बार इनको अपने घर में ही बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ।

1999 में ये मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कीए और अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए नरहन स्टेट बैंक के पीछे स्थित आवासीय विद्यालय विद्या निकेतन में पढ़ाना शुरू कर दी । 2001 में डी.बी.के. एन. कॉलेज, नरहन से आई.एससी. की परीक्षा उत्तीर्ण की । 2005 में डी. बी. के. एन. कॉलेज, नरहन से बी.एससी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इनको अपनी पढ़ाई रोकनी पड़ी क्योंकि इससे आगे की पढ़ाई की व्यवस्था गांव में नहीं थी । आगे की पढ़ाई के लिए इन्हें अपना घर छोड़कर शहर जाने की आवश्यकता थी जिसके लिए इनके माता – पिता बिल्कुल तैयार नहीं थे । फिर भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारा और 2006 में गांव से ही कंप्यूटर का कोर्स किये । इसी बीच इन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अपने माता पिता को राजी कर लिया । उस समय इनकी छोटी बहन माला राजकीय अत्यंत पिछड़ा वर्ग कन्या आवासीय उच्च विद्यालय, दरभंगा से पढ़ाई कर रही थी । इनकी माता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए अपने मायके में ही बस गई थी इस कारण इनके परिवार को बहुत सारी सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था जिसकी वजह से इनके माता-पिता इनको सी. एम. लॉ कॉलेज, दरभंगा से वकालत की पढ़ाई पढ़ाने के लिए राजी हो गए । वकालत की पढ़ाई संध्या 5:00 बजे से शुरू होती थी और रात के 9:30 बजे तक चलती थी ।

इसी बीच वकालत की पढ़ाई के साथ-साथ इन्होंने डिस्टेंस मॉड से बी. एड. भी कर लिया । अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए इन्होंने समस्तीपुर कॉलेज समस्तीपुर से एम. एससी. किया । इंटरव्यू बेस पर इनकी बहाली केजुअल शिक्षक के रूप में KVS –  2 (6 to 12) दरभंगा एयरपोर्ट में हो गई । ये उड़ान विद्यालय, मधुबनी में भी शिक्षक के रूप में काम कर चुकी हैं । इन्होंने कई साल वकालत का प्रैक्टिस भी किया । छत्रपति शाहूजी महाराज यूनिवर्सिटी, कानपुर से इन्होंने 2014 में एम. एड. किया  और बी.  एड. टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, चंद्र नगर रांको, खगड़िया में व्याख्याता के पद पर काम करने लगीं । स्वामी विवेकानंद बी. एड. टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, बासुदेवपुर, दरभंगा में भी व्याख्याता के रूप में काम कर चुकी हैं । 3 साल तक रामेश्वर लक्ष्मी महतो बी.एड. टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, मिर्जापुर, रोसड़ा में भी व्याख्याता के पद पर आसीन रही हैं । 2017 में इन्होंने श्री सत्य साईं प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय सीहोर, मध्य प्रदेश से पीएच. डी. में रजिस्ट्रेशन करवाया । इनके शोध का विषय है “मोबाइल टावर की वजह से श्रमिक मधुमक्खियों की संख्या में कमी” ।  4 साल के कठिन मेहनत और अथक प्रयास से इन्होंने पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की ।

इस शोध कार्य को पूरा करने में बहुत सारे लोगों ने इनका मदद किया । इस शोध कार्य का सफलतापूर्वक टंकण इनकी बहन माला कुमारी और उनके पति  :-  दर्शन कुमार जी किए । इनके गाइड डॉक्टर दीपक मित्तल हैं । इस शोध का उद्देश्य श्रमिक मधुमक्खियों की संख्या में लगातार हो रही कमी के कारणों का पता लगाना एवम उन्हे रोकना है । 1.  इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन के घातक प्रभावों से श्रमिक मधुमक्खियों को बचाना । 2.  मधुमक्खियां भारत में कृषि उत्पादकता के लिए सबसे महत्वपूर्ण परागकण और महत्वपूर्ण कारक में से एक हैं दुर्भाग्यवश इनकी संख्या में तेजी से गिरावट हो रही है । 3.  विद्युत चुंबकीय तरंगे मधुमक्खियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं ।  4.  मोबाइल टावर की रेडिएशन की वजह से श्रमिक मधुमक्खियां अपने छत्ते से बहुत दूर रास्ता भटक कर मर जाती है । 5. श्रमिक मधुमक्खियों पर मोबाइल टावर के दुष्प्रभाव की समीक्षा करना ।  वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था यदि किसी कारणवश धरती से मधुमक्खियों का जीवन समाप्त होता है तो 4 वर्ष के भीतर ही मानव जीवन भी समाप्त हो जाएगा, हालांकि कई वैज्ञानिक उनकी इस बात से सहमत नहीं हैं । भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ते मोबाइल टेलिफोनी उद्योगों में से एक है । मोबाइल टावर की वजह से श्रमिक मधुमक्खियों की संख्या में लगातार तेजी से कमी आ रही है मधुमक्खियों के छत्ते में तीन प्रकार की मधुमक्खियां होती है । एक छत्ते में एक रानी मक्खी होती है जिसका काम होता है अंडे देना । एक छत्ते में कई नर मक्खी  होते हैं जिनका काम होता है रानी मक्खी को अंडे देने के लिए सक्षम बनाना ।

बाकी सारी श्रमिक मधुमक्खियां होती है,  जिनका काम होता है फूलों से रस लाकर शहद तैयार करना साथ ही साथ अंडे एवं बच्चों की देखभाल करना और छत्ते के निर्माण कार्य भी श्रमिक मधुमक्खियां ही करती है । मधुमक्खी को कीट वर्ग में रंखा गया है । मधुमक्खियों से प्राप्त शहद अत्यंत पौष्टिक होते हैं, यही वजह है कि भारत में मधुमक्खी पालन एक अच्छा व्यवसाय माना गया है । मधुमक्खियां छत्ते बनाकर रहती है । मधुमक्खियों का छत्ता मोम से बनता है । इसकी वंश में 7 जातियों एवं 44 उपजातियां है । मधुमक्खियां नृत्य के माध्यम से अपने परिवार के सदस्यों की पहचान करती है । अक्टूबर से दिसंबर तक का समय मधुमक्खियों के अंडे देने का होता है। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एएमयू के वन्यजीव विभाग की 3 वर्षीय शोध से पता चला 70 से 90 फ़ीसदी तक मधुमक्खियां विलुप्त हो गई है  ।जंतु जगत में मधुमक्खी को आर्थ्रोपोडा संघ का कीट कहा जाता है जिनमें 4 प्रजातियां भारत में पाई जाती है। 1.भुगना या डम्भर : –   यह आकार में छोटी और कम शहद तैयार करने वाले मधुमक्खियां है, इसके द्वारा तैयार शहद का स्वाद कुछ खट्टा होता है । आयुर्वेद के दृष्टिकोण से इनका शहद सर्वोत्तम होता है । 2. भंवर या सारंग : –  यह देश के अलग – अलग हिस्सों में अलग – अलग नाम से जाना जाता है ।  उत्तर भारत में इसे भंवर या  भौंरेह कहते हैं । दक्षिण भारत में इसे सारंग तथा राजस्थान में मोम मक्खी कहते हैं । यह चट्टानों ऊंचे मकानों वृक्षों की डालियों पर विशाल छत्ता बनाती हैं । इनका आकार अन्य मधुमक्खियों से बड़ा होता है  । एक बार में छाते से 30 से 50 किलो शहद प्राप्त किया जा सकता है । यह आक्रामक होने के कारण पालने के दृष्टिकोण से सही नहीं है । 3. पोतिंगा या छोटी मधुमक्खी : –  इसका छत्ता छोटा और डालियों पर लटका होता है ।
 एक छत्ता 20 सेंटीमीटर लंबा और 20 सेंटीमीटर के करीब चौड़ा होता है । इससे एक छत्ते से 250 ग्राम से 500 ग्राम तक शहद प्राप्त किया जा सकता है । 4. खैरा या भारतीय मोम : –  ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रजातियों को सतकोचवा  कहा जाता है क्योंकि यह दीवारों या पेड़ के खोखलों में एक के बाद एक गरीब 7 समानांतर छत्ते बनाती है एक छत्ते से 2 किलोग्राम शहद प्राप्त किया जा सकता है । यह पेटियों में पाला जा सकता है । इस शोध से : –  1. श्रमिक मधुमक्खियों की संख्या में दिन-प्रतिदिन लगातार हो रहे गिरावट को रोका जा सकेगा । 2. भारत में कृषि उत्पादकता के तहत मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट को नियंत्रित किया जा सकेगा। 3.  मधुमक्खियों के पालन में होने वाली कठिनाइयों को दूर किया जा सकेगा । 4. श्रमिक मधुमक्खियों की संख्या में हो रही गिरावट के कारणों का पता चल सकेगा ।

इस शोध के अध्ययन की पद्धति “प्रायोगिक” है । इस शोध में फील्ड वर्क करके शोध के लिए डाटा संग्रहित किए गए । इस शोध में सबसे ज्यादा परेशानी फील्ड वर्क में हुआ । जब क्षेत्र सर्वेक्षण के लिए गए तो फील्ड में लोग कॉपरेट करना नहीं चाहते थे । अधिकांश किसानों को लगता था कि कोई सरकारी सर्वेक्षण करने वाला आया है, इसलिए किसान सही जानकारी देने से कतराते थे । नरहन के किसान अमरेश जी, अमरेंद्रजी जिनका घर रोटगणना है, वीरेंद्रजी एवम विपिनजी जिनका घर खानपुर है,  ये लोग डाटा कलेक्शन में बहुत मदद किये । निष्कर्ष : –   1. मधुमक्खियों के जीवन प्रणाली को प्रभावित करने के लिए मोबाइल फोन के लिए आवश्यक न्यूनतम स्थान खोजना अगला कदम होगा । 2. विभिन्न मामलों में मधुमक्खियों के व्यवहार का अध्ययन किया गया ।  सुझाव : –  1  इस क्षेत्र पर अधिक वैज्ञानिक ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है इससे पहले कि बहुत देर हो जाए । 2.  इस शोध को कई शाखाओं में विस्तारित किया जा सकता है जैसे :  मोबाइल टावर की वजह से चीटियों की संख्या में कमी,  मोबाइल टावर की वजह से चमगादड़ों की संख्या में कमी,  मोबाइल टावर की वजह से जानवरों की संख्या में कमी,  मोबाइल टावर की वजह से पक्षियों के जीवन चक्र पर प्रभाव,  मोबाइल टावर की वजह से मानव के जीवन पर प्रभाव,  इत्यादि ।

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