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प्रशांत किशोर ने सरकार पर साधा निशाना कहा देश में 38% लोग भूमिहीन, लेकिन बिहार में भूमिहीनों की संख्या 58%:

जन सुराज पदयात्रा के 58वें दिन आज प्रशांत किशोर ने पूर्वी चंपारण के रामगढ़वा में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मीडिया से बातचीत की। उन्होंने मीडिया के साथ अपने पदयात्रा के अबतक के अनुभव को साझा किया और कई सवालों का भी जवाब दिया।
प्रशांत किशोर ने बताया कि 2 अक्तूबर से शुरु हुए पदयात्रा के माध्यम से अबतक वे लगभग 60 दिनों की यात्रा कर चुके हैं और पश्चिम चंपारण से चलकर पूर्वी चंपारण जिले पहुंचे हैं। पदयात्रा का उद्देश्य है कि बिहार के सभी पंचायतों के विकास का 10 साल का ब्लूप्रिंट तैयार करना, जिसमें पंचायत आधारित समस्यायों और उसके समाधान का पूरा विवरण होगा। प्रयास है कि समाज को मथ कर सभी सही लोगों को चिन्हित कर एक मंच पर लाए जाए और बिहार में व्यवस्था परिवर्तन के लिए एक बेहतर विकल्प बनाया जाए।
प्रशांत किशोर ने बिहार की बदहाली का जिक्र करते हुए बताया, “पदयात्रा के दौरान अबतक उन्हें जिन गांवों और पंचायतों में जाने का मौका मिला है, वहां पलायन की समस्या बहुत बड़ी है। गांवों में 60% तक नवयुवक नहीं है। शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त है, शिक्षा के लिए जरूरी आधारभूत संरचना – शिक्षक, भवन और विद्यार्थी, इन तीनों का समायोजन कहीं देखने को नहीं मिला। एक लाइन में कहा जाए तो स्कूलों में खिचड़ी बंट रही है और कॉलेजों में डिग्री बंट रही है। नीतीश कुमार के शासनकाल की सबसे बड़ी नाकामी है बिहार में शिक्षा व्यवस्था का ध्वस्त हो जाना।
बिहार में भूमिहीनों की समस्या का जिक्र करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में गरीबी और बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है बड़ी संख्या में भूमिहीनों का होना। आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 58% लोग भूमिहीन हैं, इसके लिए उन्हें रोजगार के लिए बिहार से बाहर जाना पड़ता है। जबकि देश में भूमिहीनों की संख्या 38% है। पश्चिम चंपारण में करीब 1 लाख 25 हजार ऐसे लोग मिले जिन्हें पट्टे पर जमीन तो मिली, लेकिन आजतक उन्हें जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला है, ऐसे लोग बड़ी संख्या में पूर्वी चंपारण में भी मिले। 

किसानों की हालत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों को अपना अनाज समर्थन मूल्य ने कम दामों पर बेचना पड़ता है। इसके कारण किसानों का हर साल 25 से 30 हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है। अगर यहां मंडी की व्यवस्था के दी जाए और किसानों को उनका समर्थन मूल्य मिलने लगे तो इतनी बड़ी राशि का फायदा हो सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि बिहार में सिंचाई की जमीन या नेट एरिगेटेड एरिया 5% तक घट चुकी है। बिहार में उद्योगों का जिक्र करते हुए प्रशांत किशोर ने बताया कि एक सेमी कंडकटर की फैक्ट्री लगाने वाली कंपनी मेदांता जिसके मालिक बिहार के हैं, वो अपनी फैक्ट्री गुजरात में लगा रहे हैं। इस बात की चर्चा तक बिहार में नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि मैं दावे के साथ कह सकता हूं बिहार सरकार के मंत्रिमंडल का कोई भी व्यक्ति नहीं बता सकता कि सेमी कंडकटर क्या होता है। हम-आप ऐसे लोगों को चुनकर भेजते हैं, जिसके कारण हम 3-4 दशक पूर्व की दुर्दशा में जी रहे हैं।
प्रशांत किशोर ने कैश डिपोजिट रेशीयो (सी डी रेशियो) का जिक्र करते हुए कहा, “देश का सी डी रेशियो यानी बैंकों में जमा होने वाली कुल राशि का ऋण के लिए उपलब्ध होना। देश के अग्रणी राज्यों में ये अनुपात 90% तक है, जबकि बिहार में ये अनुपात 40% है। इसका मतलब है कि अगर बिहार में लोग 100 रुपए बैंक में जमा करते हैं तो उसमें से केवल 40 रुपए बिहार के लोग ऋण के तौर पर ले सकते हैं। बिहार में अभी लोग साल में 4 लाख करोड़ रुपए बैंकों में जमा कराते हैं, लेकिन उसमें से केवल 1.65 लाख रुपए का ऋण ले पाते हैं। सरकारी अनुपात के हिसाब से बिहार के लोगों को 2.80 लाख करोड़ रुपए का ऋण मिलना चाहिए।”
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा, “नीतीश कुमार और उनके शासनकाल के लिए लोग जमीन पर अपशब्द का प्रयोग कर रहे हैं। नीतीश कुमार बिहार के किसी गांव में बिना सुरक्षा और सरकारी अमला के पैदल नहीं चल सकते। बिहार में अफसरशाही, भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। बिना पैसा दिए एक काम नहीं होता है। अगर लालू जी का शासनकाल अपराधियों का जंगलराज था तो नीतीश कुमार का शासनकाल अधिकारियों का जंगलराज है। 2014 के नीतीश कुमार और 2017 के नीतीश कुमार में जमीन आसमान का फर्क है। 2014 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था, लेकिन 2020 में विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद भी कुर्सी पर किसी तरह बने हुए हैं। नीतीश कुमार जब भाजपा के साथ होते हैं तब उन्हें विशेष राज्य के दर्जे की याद नहीं आती, भाजपा से अलग होते ही वे विशेष राज्य के दर्जे की मांग करने लगते हैं। वर्तमान में केंद्र से मिलने वाली राशि तो बिहार सरकार ले नहीं पा रही है, मनरेगा के लिए केंद्र बिहार को 10 हजार करोड़ रुपए सालाना आवंटित करती है, बिहार सरकार केवल 40% बिहार सरकार ले रही है। ऐसे में विशेष राज्य का दर्जे का कोई मतलब नहीं है।

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