प्रकृति की पूजा सदियों से होती आ रही हैं। हो भी क्यों न, छठ पूजा एक खगोलीय अवसर जो है ! छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इन चार दिनों की पूजा से संबंधित प्रत्येक आचरण का सम्बन्ध प्रकृति और पर्यावरण से है।
*पहले दिन (नहाय-खाय के दिन) सेंधा नमक, घी से बनी हुई अरवा चावल की खीर और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में दी जाती है । इससे शरीर तो स्वस्थ रहता ही है, साथ ही प्राकृतिक स्त्रोत से निकले सामान का प्रसाद इस्तेमाल करने से शरीर में आयोडीन की पूर्ति होती है।
* दूसरे दिन (खरना )उपवास पर रहते हैं और उपवास के कारण शरीर का बहुत सारा टॉक्सिन बाहर निकल जाता है ।
रात्रि में खीर – गेहूँ की सादा रोटी व केला का अल्पाहार लेकर आगे 48 घंटे के लिए निर्जल उपवास के लिए संकल्पित हो जाती हैं।
* तीसरे दिन छठ पूजा की शाम में यानि अस्ताचल गामी भास्कर भगवान का पहला अर्घ्य दिया जाता है और
*चौथे दिन सुबह में उदयमान भास्कर प्रभाकर भगवान का दूसरा अर्घ्य दिया जाता है उस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती है।
उसके संभावित कुप्रभावों से छठ पूजा मानव की रक्षा करती है ।सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैंगनी किरण भी चन्द्रमा और पृथ्वी पर आती है पर वायुमंडल इन पराबैंगनी किरणों का उपयोग कर अपने आक्सीजन तत्वों को संश्लेसित कर उसे एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है ।इसके कारण पराबैंगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है ।पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है ।सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि
उसकी गुनगुनी धूप से हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं । इससे छठव्रतियों को लाभ ही होता है
इस समय विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में सूर्य की किरणों से निकलता है । इतना ही नहीं, छठ पूजा के लिए जितने भी सामानों का इस्तेमाल होता है वह प्रकृति से सीधे जुड़े हुए हैं ।
यह व्रत एक तरफ शरीर को स्वस्थ रखता है तो दूसरी तरफ पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है ।”
💐 खेती से जुड़े हैं छठ का त्योहार
छठ महापर्व को खेती से जुड़ा हुआ त्योहार माना जाता है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक छठ पूजा के लिए नई फसलों का प्रयोग अधिक हुआ करता है ।
इसलिये इसे नवान्न का पर्व भी कहा जाता है ।
नहाय खाय से लेकर अर्घ्य दिए जाने तक नई फसलों का ही प्रसाद बनता है ।खरना में प्रसाद के रूप में जो खीर, पीठा और रोटी बनती है उसमें चावल, ईख से बना गुड़ और गेहूं की नई फसल इस्तेमाल की जाती है ।इसके पीछे यह धारणा है कि जो फसल सीधे खेत से निकल कर आती है वह पूजा के लिए शुद्ध होती है ।
तीसरे दिन यानी अर्घ्य दिए जाने के दिन भी जो फल, पकवान, ठेकुआ और लड़ुआ का इस्तेमाल किया जाता है उसमें भी नई फसलों का प्रयोग किया जाता है ।जैसे चावल, गेहूं, अदरख, पानी फल सिंघाड़ा , हल्दी, सुथनी और केला ।कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि आज के समय में मौसम की दगाबाजी के कारण छठ व्रतियों को कई नई फसलें नहीं मिल पाती हैं ।इसलिए वे पिछले साल की फसलों का ही इस्तेमाल करते हैं पर फिर भी कोशिश यही रहती है कि नई फसलों का ही प्रयोग करें।
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